सुकूत

ख़ुद को भूल हज़ारों से सलाह ली मैंने

न जाने कैसी आफ़त बुला ली मैंने

 

दुनिया में बनने आया था मैं एक शख़्स और

एक शख़्स में ही दुनिया बना ली मैंने

 

इक रोज़ चख़ा आँखों से मीठा ज़हर ऐसा

फिर ज़िंदगी भर रोज़ दवा ली मैंने

 

हँसता हूँ ख़सारा रोता हूँ सुख़न देख

अपनी औंधी खोपड़ी क्यों लगा ली मैंने

 

ग़ुलाब खिल चुके थे उजाले गुलाबी गुलाबी

कि ज़ायका बदलने एक सिगरेट जला ली मैंने

 

रात ढलते सी लिए फिर कुछ नये पैकर

सुब्ह से पहले फिर इज़्ज़त बचा ली मैंने

 

ज़िद नहीं पर हो सके तो मुस्कुरा देना

पहली दफ़ा अपने हिस्से ज़मीं पा ली मैंने

 

वो मुड़ कर नहीं आएगा मैं लिख के देता हूँ

इस सुकूत से लो फिर नयी धुन बना ली मैंने