राज़दार
तुमको रहा है फिर रिझा वो मुश्क-बार जो
तुम अपने पाओं फिर ये कुल्हाड़ी ना मार लो
ये काली रात मेरी ख़ास राज़दार है
मैं जल रहा हूँ चराग़ों एक नींद मार लो
तुम क्यों उदास हो ग़र आख़िरी सफ़र मिरा
एक आख़िरी दफ़ा हँसो ख़ुद को संवार लो
तुम मेरी अमावस से रोशनी नहीं माँगो
इक काम करो छत पे टंगा चाँद उतार लो
ये बेचने चले हैं फिर से मुल्क-ओ-वतन
हैं लग गये गली में नये इश्तिहार लो
जब बहर-ए-ख़ुदा भी न मिली माँग आज़ादी
तब याद आया मुझको है ये इन्तिहार लो
मैंने रक़ीब को दिये ख़ुशबू भरे तोहफ़े
तुम सर जबह को आये हो? आओ उतार लो
चलो एक आख़िरी मुराद पूरी कर देना मिरी
मेरे कफ़न की रंगत उस सी लाला-ज़ार हो
या तो गले में मुझको तेरी बाँहें चाहिए
और न सही तो चल पड़ेंगे सू-ए-दार लो